स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् से ही भारतीय मनीषियों एवं शिक्षाविदों के ध्यान में आया कि मैकाले प्रणीत पाश्चात्य शिक्षा पद्धति पर चलने वाले विद्यालयों मे पढ़ने वाली हमारी सन्तानों के सद्संस्कार सुरक्षित नहीं रह सकेगे अतः प्रत्येक प्रान्त में अलग-अलग नामों से भारतीय जीवन एवं संस्कृति पर आधारित विद्यालय खुलने प्रारम्भ हुए। इन विद्यालयों की शिक्षा को केवल अंक ज्ञान और अक्षर ज्ञान से नहीं जोड़ा गया, अपितु इसको संस्कारक्षम परिवेश, बोधक शिक्षण , सक्रिय संस्कार, संवेदनशील बनाने के लिए राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ द्वारा अनुप्रेरित “अखिल भारतीय विद्याभारती शिक्षण संसथान” का उदय हुआ। अखिल भारतीय स्तर पर सरस्वती शिशु मन्दिर योजना विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षण संस्थान नाम से है। विद्या भारती की स्थापना सन् 1977 में हुई। आज इसके अन्तर्गत देश के सभी प्रान्तों मे शिशु मन्दिर एवं विद्या मन्दिर के दीप विविध नामो से प्रदीप्त है। वर्तमान में इन विद्यालयों की संख्या लगभग 34 हजार है अध्ययनरत छात्र-छात्राओं की संख्या 35 लाख एवं कार्यरत आचार्यों की संख्या 1 लाख 20 हजार से भी अधिक है। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश में बाबा गोरखनाथ की पावन नगरी गोरखपुर में ब्रह्मलीन श्रद्धेय श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जैसे महामनीषी की सदेच्छा एवं थोड़े से राष्ट्रभक्त कार्यकर्ताओं के दृढ़ निश्चय के कारण सन् 1952 में सरस्वती शिशु मंदिर शिक्षा योजना का का शुभारम्भ हुआ। धीरे-धीरे तपःस्थली गोरखपुर की सुगंध आस-पास के जनपदों में