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योग का व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्त्व है। व्यक्ति का सर्वांगीण विकास हो, इसके लिए योग एक महत्त्वपूर्ण साधन है। योग साधना एक ऐसी सरल तथा सफल साधना है जिसके द्वारा व्यक्ति का विकास ही नहीं वरन् सारे समाज, राष्ट्र तथा अन्त में सारी मानवता का कल्याण हो सकता है। यदि व्यक्ति अच्छा है, ईमानदार है, चरित्रवान है, कर्तव्यनिष्ठ है तो समाज भी ऐसा ही बनेगा। यदि समाज अच्छा है तो राष्ट्र अच्छा होगा।
शारीरिक शिक्षा से आशय शरीर से संबंधित शिक्षा प्रदान करना हैं। यह शिक्षा सामान्यतः व्यायाम,योग,साफ-सफाई,जिमनास्टिक, सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों आदि के माध्यम से प्रदान की जाती हैं। शारीरिक शिक्षा प्रदान करने का उद्देश्य मात्र छात्रों को स्वस्थ रखना ही नही हैं। अपितु मनोविज्ञान एवं बाल मनोविज्ञान के अंतर्गत इसे महत्वपूर्ण स्थान दिया गया हैं। क्योंकि यह शरीर को ही नही अपितु छात्रों के मस्तिष्क एवं उनके व्यवहार में भी परिवर्तन लाने का कार्य करती हैं।
संगीत बहुत ही शक्तिशाली माध्यम है और सभीतक काफी सकारात्मक संदेश पहुँचाता है। हमें संगीत द्वारा काफी सहायता मिलती है, संतीत हमारे जीवन को और भी अच्छा करने का कार्य करता है। संगीत की प्रकृति प्रोत्साहन तथा बढ़ावा देने की भी है, जो सभी नकारात्मक विचारों को हटाकर मनुष्य की एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाने का कार्य भी करता है
संस्कृत, विश्व की सबसे पुरानी पुस्तक (ऋग्वेद) की भाषा है। इसलिये इसे विश्व की प्रथम भाषा मानने में कहीं किसी संशय की संभावना नहीं है। इसकी सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता भी स्वयं सिद्ध है। संस्कृत अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मिलती है। संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है। जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश के साथ सक्रिय हो जाता है। .
वस्तुतः विद्यार्थी जीवन आचरण की पाठशाला है. सभ्य संस्कार सम्पन्न नागरिक का निर्माण विद्यार्थी जीवन में ही होता है. विद्यार्थी को जैसी शिक्षा दी जायेगी, जैसे संस्कार उन्हें दिए जाएगे, आगे चलकर वह वैसा ही नागरिक बनेगा. इस बात का ध्यान रखकर नैतिक शिक्षा का समायोजन किया गया है
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् से ही भारतीय मनीषियों एवं शिक्षाविदों के ध्यान में आया कि मैकाले प्रणीत पाश्चात्य शिक्षा पद्धति पर चलने वाले विद्यालयों मे पढ़ने वाली हमारी सन्तानों के सद्संस्कार सुरक्षित नहीं रह सकेगे अतः प्रत्येक प्रान्त में अलग-अलग नामों से भारतीय जीवन एवं संस्कृति पर आधारित विद्यालय खुलने प्रारम्भ हुए। इन विद्यालयों की शिक्षा को केवल अंक ज्ञान और अक्षर ज्ञान से नहीं जोड़ा गया, अपितु इसको संस्कारक्षम परिवेश, बोधक शिक्षण , सक्रिय संस्कार, संवेदनशील बनाने के लिए राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ द्वारा अनुप्रेरित “अखिल भारतीय विद्याभारती शिक्षण संसथान” का उदय हुआ।
अखिल भारतीय स्तर पर सरस्वती शिशु मन्दिर योजना विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षण संस्थान नाम से है। विद्या भारती की स्थापना सन् 1977 में हुई। आज इसके अन्तर्गत देश के सभी प्रान्तों मे शिशु मन्दिर एवं विद्या मन्दिर के दीप विविध नामो से प्रदीप्त है। वर्तमान में इन विद्यालयों की संख्या लगभग 34 हजार है अध्ययनरत छात्र-छात्राओं की संख्या 35 लाख एवं कार्यरत आचार्यों की संख्या 1 लाख 20 हजार से भी अधिक है।